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एडमिन डेस्क
विशेष न्यायाधीश अविनाश के त्रिपाठी ने दिया आजीवन कारावास कहा कि आरोपी में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है और वे समाज में दुबारा शामिल होने के लायक नहीं है ।
दुर्ग ==अभियोक्त्री अपने पि ता व छोटी बहन के साथ रहती है एवं उसकी मां की मृत्यु हो चुकी है। अभियोक्त्री कक्षा पहली में पढ़ती है। अभियोक्त्री के घर के बाजू में ही आरोपी रहता है।
घटना दिनांक 30.01.2021 को शाम लगभग 6-7 बजे अभियोक्त्री अपने घर में थी, तभी आरोपी उसके घर में आकर उसे पलंग के पास बुलाया और अपने साथ कबल ओढ़ाकर सुला दिया और उसकी लोवर चड्डी के अंदर हाथ डालने लगा, जब अभियोक्त्री मना की तो आरोपी अपने हाथ को निकाला और थोड़ी देर बाद पुनः उसकी चड्डी के अंदर हाथ डाला तथा अपने सुसु करने वाले जगह (लिंग) को उसके सुसु करने वाले जगह (लिंग) के अंदर डालकर बलात्संग कारित किया। तत्पश्चात् उक्त घटना की जानकारी फोन से मिलने पर जब अभियोक्त्री के पिता घर आये तब अभियोक्त्री ने उसे घटना की बात बताई।तब थाने में रिपोर्ट की गई।न्यायालय में चालान पेश किया गया।बाद मेंआरोपी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा-450, 378 ( क ) ( ख ) एवं लैगिंक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा-5 (ड) में परिभाषित धारा-06 के अपराध में दोषसिद्ध पाकर शेष प्राकृत काल के लिए आजीवन कार्यवास दिया।
अभियोजन ने मृत्युदंड का निवेदन किया किन्तु न्यायालय ने”रोनल जेम्स बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र” (1998) 3 एससीसी 625, “अलाउद्दीन मियान बनाम स्टेट ऑफ बिहार” (1989) 3 एससीसी 5, “नरेश गिरि वि० स्टेट ऑफ एम. पी.” (2001) 9 एससीसी 615 को अनुसरित करते हुए मरत्युदण्ड की जगह आजीवन कारावास देते हुए कहा कि यदि आरोपी को मृत्युदण्ड दिया जाता है तो वह अपने कुकर्मों का प्रायश्चित नहीं कर पायेगा एवं अपने मानव जीवन से मुक्ति पा जायेगा तथा वह इस मानव योनी से मुक्त भी जायेगा। इसके विपरीत यदि आरोपी को शेष प्राकृतकाल के लिए आजीवन कारावास का दण्ड दिया जाता है तो वह अपने कुकर्मों का जीवनकाल तक सोच-सोच के घुटन में मानसिक रूप से मृत्यु को प्राप्त करता रहेगा तथा उसी प्रायश्चित में घुटता रहेगा। चूंकि मृत्युदण्ड आरोपी की पश्चात्ताप की अवधारणा को समाप्त कर देता है, ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए। वे जीवनभर पश्चाताप के पात्र है। इस प्रकरण में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है और वे समाज में दुबारा शामिल होने के लायक नहीं है । इस प्रकार प्रकरण की समस्त परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एवं उभयपक्षों के तर्कों का गहराई से मनन करने के उपरान्त आरोपी को मृत्युदण्ड न दिया जाकर शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए आजीवन कारावास से एवं अर्थदण्ड से दंडित किया गया और 6,50000 रु का प्रतिकर भी पीड़िता को दिए जाने का निर्देश दिया।
